लेखांकन Accounts in hindi

वैश्वीकरण का व्यवसाय तथा उद्योग पर क्या प्रभाव पड़ा ?

वैश्वीकरण का व्यवसाय तथा उद्योग पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े हैं :-
  • आयात शुल्क में पर्याप्त कमी की गई है।
  • आयात-निर्यात प्रतिबंधों को कम किया गया है।
  • विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के लिए द्वार खोल दिए गये हैं।
  • भारत में विदेशी पूंजी का तेजी से आगमन हो रहा है।
  • वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप भारत में विदेशी बैंकों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है।

वैश्वीकरण (Globalisation) क्या है ?

वैश्वीकरण विभिन्न देशों के लोगों, कंपनियों और सरकारों के बीच बातचीत और एकीकरण की प्रक्रिया है। वैश्वीकरण में सम्पूर्ण विश्व को एक बाजार का रूप प्रदान किया जाता है। वैश्वीकरण से आशय विश्व अर्थव्यवस्था में आये खुलेपन, बढ़ती हुई अन्तनिर्भरता तथा आर्थिक एकीकरण के फैलाव से है।
इसके अंतर्गत विश्व बाजारों के मध्य पारस्परिक निर्भरता उत्पन्न होती है तथा व्यवसाय देश की सीमाओं को पार करके विश्वव्यापी रूप धारण कर लेता है । वैश्वीकरण के द्वारा ऐसे प्रयास किये जाते है कि विश्व के सभी देश व्यवसाय एवं उद्योग के क्षेत्र में एक-दूसरे के साथ सहयोग एवं समन्वय स्थापित करें।
वैश्वीकरण में सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव दोनों हैं। एक व्यक्तिगत स्तर पर, वैश्वीकरण जीवन के मानक और जीवन की गुणवत्ता दोनों को प्रभावित करता है। व्यवसाय स्तर पर, वैश्वीकरण संगठन के उत्पाद जीवन चक्र और संगठन की बैलेंस शीट को प्रभावित करता है।

वैश्वीकरण की विशेषताएँ क्या है ?

वैश्वीकरण की निम्नलिखित विशेषताएँ है :
  • वैश्वीकरण की ये एक प्रमुख विशेषताएं है की इस के अंतगर्त आर्थिक क्रियाओं का राष्ट्रीय सीमा से आगे विस्तार किया जाता है।
  • वस्तुओं, सेवाओं, पूंजी, तकनीकी तथा श्रम संबंधी अंतर्राष्ट्रीय बाजारों का एकीकरण हो जाता है अर्थात इनके आवागमन पर सभी प्रकार को रूकावट हटा ली जाती है।
  • बहुराष्ट्रीय कंपनियों का विस्तार होता है।
  • वैश्वीकरण राष्ट्रों की राजनीतिक सीमाओं के आर-पार आर्थिक लेन-देन की प्रक्रियाओं और उनके प्रबंधन का प्रवाह है।

निजीकरण का व्यवसाय तथा उद्योग पर क्या प्रभाव (Impact) पड़ा ?

निजीकरण का व्यवसाय तथा उद्योग पर निम्नलिखित कुछ प्रमुख प्रभाव पड़ा :-
  • नवीन आर्थिक नीति के अंतगर्त अब ऋणों की अंशों में परिवर्तनीयता आवश्यक नहीं है ?
  • नवीन आर्थिक नीति के अंतगर्त सरकार निजी क्षेत्र के उद्योगों के विकास एवं विस्तार के लिए सम्भव प्रोत्साहन प्रदान कर रही है।
  • भारत के व्यावसायिक एवं औद्योगिक क्षेत्र में आर्थिक सुधारों के अंतगर्त निजीकरण की प्रकिया अपनाने के कारण निजी क्षेत्र के कुल निवेश में तेजी से वृद्धि हुई है।

भारतीय अर्थव्यवस्था और समाज पर उदारीकरण का क्या प्रभाव पड़ा ?

उदारीकरण का भारतीय अर्थव्यवस्था और समाज पर निम्नलिखित कुछ प्रमुख प्रभाव पड़ा है :
  • विकास दर पर प्रभाव पड़ा है
  • उद्योग पर प्रभाव पड़ा है
  • कृषि पर प्रभाव पड़ा है
  • सेवाएं पर प्रभाव पड़ा है
  • शिक्षा क्षेत्र और स्वास्थ्य क्षेत्र पर प्रभाव पड़ा है

निजीकरण (Privatisation)क्या है ?

निजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे क्षेत्र या उद्योग को सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र में स्थानांतरित किया जाता है।
दूसरे शब्दों में हम इसे ऐसे भी कह सकते है कि निजीकरण से आशय ऐसी औद्योगिक इकाइयों को निजी क्षेत्र में हस्तांतरित किये जाने से है जो अभी तक सरकारी स्वामित्व एवं नियंत्रण में थी।
सार्वजनिक क्षेत्र सरकारी एजेंसियों द्वारा संचालित आर्थिक प्रणाली का हिस्सा है। निजीकरण में सरकारी संपत्तियों की बिक्री या निजी व्यक्तियों और व्यवसायों को किसी दिए गए उद्योग में भाग लेने से रोकने वाले प्रतिबंधों को हटाना भी शामिल हो सकता है।
निजीकरण के समर्थकों का कहना है कि निजी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा अधिक कुशल प्रथाओं को बढ़ावा देती है, जो अंततः बेहतर सेवा और उत्पाद, कम कीमत और कम भ्रष्टाचार उत्पन्न करती है।
दूसरी तरफ, निजीकरण के आलोचकों का तर्क है कि कुछ सेवाएं - जैसे कि स्वास्थ्य देखभाल, उपयोगिताओं, शिक्षा और कानून प्रवर्तन - सार्वजनिक क्षेत्र में अधिक नियंत्रण सक्षम करने और अधिक न्यायसंगत पहुंच सुनिश्चित करने के लिए होना चाहिए।

उदारीकरण का व्यवसाय तथा उद्योग पर क्या प्रभाव (Impact) पड़ता है ?

उदारीकरण के व्यवसाय तथा उद्योग पर निम्नलिखित कुछ प्रमुख प्रभाव पड़ा है :
  • टेक्नोलॉजी आयात से मुक्ति :- उदारीकरण नीति के अंतगर्त उच्चतम प्राथमिकता वाले उद्योगों को विदेशों से टेक्नोलॉजी का आयात करने के लिए सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।

  • उद्योगों के विस्तार की स्वतन्त्रता :- उदारीकरण नीति के अंतगर्त विद्यमान उद्योगों को विस्तार के लिए सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।

  • औद्योगिक लाइसेंसिंग तथा पंजीकरण की समाप्ति :- उदारीकरण नीति के अंतगर्त उद्योगों के पंजीकरण की प्रणाली को समाप्त कर दिया गया है। जिसके वजह से 6 उद्योगों को छोड़कर शेष सभी उद्योगों को लाइसेंसिंग से मुक्त कर दिया गया है। 

    ये उद्योग हैं :-
    1. रक्षा उपकरण
    2. शराब
    3. औद्योगिक विस्फोटक
    4. सिगरेट
    5. खतरनाक रसायन
    6. औषधियाँ

  • लघु उद्योगों की निवेश सीमा में वृद्धि :- लघु उद्योगों की निवेश सीमा 1 करोड़ कर दी गई है तथा अति लघु उद्योगों की निवेश सीमा बढ़ाकर 25 लाख रु. कर दी गई है।

  • पूंजीगत माल के आयात की स्वतन्त्रता :- उदारीकरण नीति के अंतगर्त विद्यमान उद्योगों को विदेशों से पूंजीगत माल आयात करने के लिए सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।

उदारीकरण के प्रमुख उपाय (Measures) क्या है ?

उदारीकरण के प्रमुख उपाय निम्नलिखित है :
  • लाइसेंसिंग प्रणाली को न्यूनतम तथा सरल बनाना।
  • सरकारी नियंत्रणों के स्थान पर बाजार शक्तियों को प्रोत्साहित करना।
  • स्कन्ध विपणि क्रियाओं को नियमित करना।
  • वस्तुओं एवं सेवाओं के आवागमन पर लगी बाधाओं को हटाना।
  • नवीन उद्योगों की स्थापना की स्वतंत्रता देना।
  • इंस्पेक्टर राज्य को समाप्त करना अथवा न्यूनतम करना।
  • वस्तुओं की कीमत का निर्धारण उत्पादकों/निर्माताओं द्वारा किया जाना।
  • आयात नीति को सरल बनाना।
  • उत्पादों के वितरण पर लगी रोकों को हटाना।

व्यावसायिक वातावरण के तत्त्व (Elements) क्या है ?

व्यावसायिक वातावरण के तत्त्वों को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है :
  1. आर्थिक वातावरण (Economic Environment) :-व्यावसायिक वातावरण के सभी तत्वों में से आर्थिक वातावरण एक जटिल व्यवस्था है। इसमें बहुत सारे घटक है जैसे आर्थिक दशाएं, आर्थिक नीतियाँ, आर्थिक प्रणालियाँ, पूंजीवादी प्रणाली आदि।

  2. सामाजिक वातावरण (Social Environment) :-व्यवसायी को सामाजिक ज्ञान का होना आवश्यक है क्यूँकि समाज व्यवसाय का आधार है। सामाजिक ज्ञान के अंतगर्त सामाजिक मूल्य, सामाजिक संस्थाएँ, सामाजिक विश्वास, शिक्षा, सामाजिक मान्यताएँ आदि आते हैं। किसी की व्यवसाय को सामाजिक वातावरण भिन्न-भिन्न प्रकार से प्रभावित करते हैं।

  3. राजनीतिक वातावरण (Political Environment) :- राजनीतिक वातावरण भी व्यवसायिक वातावरण को काफी प्रभावित करती है। व्यवसाय को सरकार के दृष्टिकोण के अनुसार अपनी क्रियाओं को करना पड़ता है। राजनीतिक निर्णय व्यवसाय की दिशा ही बदल देते हैं।

  4. वैधानिक वातावरण (Legal Environment) :-वैधानिक वातावरण के अंतगर्त विभिन्न तरह के क़ानूनी नीतियाँ, विभिन्न वैधानिक नियंत्रण को शामिल किया जाता है। व्यवसाय तथा कानून में परस्पर धनिष्ठ संबंध है। व्यवसायी को हमेशा कानून के दायरे में ही काम करना पड़ता है।

  5. तकनीकी वातावरण (Logical Environment) :- तकनीकी वातावरण के अंतर्गत नए-नए यंत्र, यांत्रिक सुधार, व्यवस्था की खोज, डिजाइन, नए विकास आदि को शामिल किए जाते हैं।

उदारीकरण (Liberalisation) क्या है ?

उदारीकरण एक नई आर्थिक नीति है जिसके द्वारा देश में ऐसा आर्थिक वातावरण व स्थापित करने के प्रयास किया जाते हैं जिससे देश के व्यवसाय व उद्योग स्वतंत्र रूप से विकसित हो सकें।
उदारीकरण का मतलब होता है व्यवसाय तथा उद्योग पर लगे प्रतिबन्धों को कम करना जिससे व्यवसायी तथा उद्यमियों को कार्य करने में किसी प्रकार की बधाओं का समाना न करना पड़े।
उदारीकरण व्यापारिक दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव किया है और सभी देशों के लिए अत्यधिक अवसर प्रदान किए हैं।
उदारीकरण नई औद्योगिक नीति का परिणाम है जो "लाइसेंस प्रणाली" को समाप्त कर देता है।
तो इस तरह से हम कह सकते है कि सरकार द्वारा व्यापार नीति को उदार बनाना जो देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं के प्रवाह पर टैरिफ, सब्सिडी और अन्य प्रतिबंधों को हटा रहा है, उदारीकरण के नाम से जाना जाता है।

व्यावसायिक वातावरण की विशेषताएँ क्या है ?

व्यावसायिक वातावरण की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ है :
  1. गतिशील प्रकृति (Dynamic Nature) : - व्यावसायिक वातावरण के घटक निरंतर परिवर्तन होते हैं। इसके व्यावसाय पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए यह कहा जाता है कि व्यावसायिक वातावरण गतिशील होते हैं।

  2. अनिश्चितता (Uncertainty) : - व्यावसायिक वातावरण अनिश्चित होते हैं और इन अनिश्चितताओं का पूर्वानुमान लगाना व्यवसायियों के लिए कठिन होता है।

  3. जटिलता (Complexity) व्यावसायिक वातावरण अनेक घटकों से मिलकर बनता है। ये सभी घटक आपस में एक दूसरे से संबंधित होते हैं। यही कारण है कि व्यवसाय के लिए इनका सामना करना बहुत कठिन है।

  4. परस्पर निर्भरता (Inter-Dependence) : - व्यावसायिक वातावरण के विभिन्न घटक एक-दूसरे से संबंधित होते हैं।

  5. बाहरी शक्तियों की सम्पूर्णता (Totality Of External Forces) : - व्यावसायिक वातावरण उन सभी शक्तियों का योग है जो व्यवसाय के बाहर उपलब्ध होती हैं और जिन पर व्यवसाय का कोई नियंत्रण नहीं होता है। यह एक नहीं बल्कि अनेक अनेक शक्तियों का समूह है इसलिए इनकी प्रकृति सम्पूर्णता की है।

व्यावसायिक वातावरण क्या है ?

व्यापारिक वातावरण ((Business Environment )) सभी बाहरी और आंतरिक कारकों का कुल योग है जो व्यापार को प्रभावित करते हैं। आपको यह ध्यान रखना चाहिए कि बाहरी कारक और आंतरिक कारक एक दूसरे को प्रभावित कर सकते हैं और एक व्यवसाय को प्रभावित करने के लिए मिलकर काम कर सकते हैं।
व्यावसायिक वातावरण से आशय उन समस्त बाहरी आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक एवं प्राकृतिक शक्तियों से है जो की व्यवसाय एवं उसके प्रचालन को प्रभावित करती है।
ये सभी शक्तियाँ व्यवसाय के नियंत्रण से प्रे होती है, मतलब व्यवसाय का इन सब पर कोई निंयत्रण नहीं रहता है किन्तु ये व्यवसाय को प्रभावित करते हैं।
इस तरह व्यावसायिक वातावरण विभिन्न घटकों के संयोग से बना है जिस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है और अधिक-अधिक से हम उनका अध्ययन कर अपने आप को समायोजित कर सकते हैं।
व्यावसायिक वातावरण (Business Environment ) विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं वैधानिक एवं दशाओं का योग है जीके अंतगर्त व्यवसाय को कार्य करना होता है।
प्रमुख विद्वान के द्वारा व्यावसायिक वातावरण (Business Environment ) दी गई परिभाषा :
रॉबिन्स के अनुसार : व्यावसायिक वातावरण उन संस्थाओं तथा शक्तियों से बना होता है जो किसी संगठन के कार्य निष्पादन को प्रभावित करती है किन्तु उस संगठन का उन पर बहुत कम नियंत्रण होता है।
रेनकी के अनुसार : व्यावसायिक वातावरण में उन सभी बाहरी घटकों को सम्मिलित किया जाता है जिससे व्यवसाय प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित होते हैं।

व्यवसाय क्या है ?

व्यवसाय एक आर्थिक गतिविधि है, जो मानव इच्छाओं को संतुष्ट करने के लिए माल और सेवाओं के निरंतर और नियमित उत्पादन और वितरण से संबंधित है।
व्यवसाय एक संगठन या आर्थिक व्यवस्था है जहां वस्तुओं और सेवाओं को एक दूसरे के लिए या पैसे के लिए अदला बदली किया जाता है।
हम सभी को भोजन, कपड़े और आश्रय की जरूरत है। हमारे दैनिक जीवन में संतुष्ट होने के लिए हमारे पास अन्य घरेलू आवश्यकताएँ भी हैं और हम दुकानदार से इन आवश्यकताओं को पूरा करते है।
मनुष्य अपने असीमित इच्छाओं को पूरा करने के लिए लगातार कुछ गतिविधियों में या अन्य में लगे हुए हैं हर दिन हम 'व्यवसाय' या 'व्यापारी' शब्द पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आते हैं। व्यापार आधुनिक दुनिया का अनिवार्य हिस्सा बन गया है ।
आधुनिक व्यवसाय सेवा उन्मुख है। आधुनिक व्यवसायी अपनी सामाजिक जिम्मेदारी के प्रति सचेत हैं। आज का व्यवसाय लाभ-उन्मुख की बजाय सेवा उन्मुख है ।
व्यापार की विशेषताएं :
व्यवसाय की निम्नलिखित कुछ प्रमुख विशेषताएँ है :
  • वस्तुओं और सेवाओं का आदान प्रदान करना
  • लाभ मुख्य उद्देश्य है
  • व्यापार जोखिम और अनिश्चितताओं के अधीन है
  • प्रत्येक व्यवसायिक लेनदेन में कम से कम दो पार्टियां होते है, एक खरीदार और दूसरा विक्रेता
  • व्यवसाय गतिविधि माल या सेवाओं के उत्पादन से जुड़ी हो सकती है।

एक व्यवसायी (Businessman) क्या है?

व्यवसायी एक ऐसा व्यक्ति है जो व्यापार में काम करता है। दूसरे शब्दों में हम ऐसे भी कह सकते है कि एक व्यापारी व्यवसाय में शामिल कोई व्यक्ति होता है जो एक संगठन या कंपनी द्वारा नियोजित रहता है।
इस तरह से हम ऐसे भी कह सकते है की एक व्यवसायी एक ऐसा व्यक्ति होता है जो व्यवसाय चलाता है साथ ही एक अनौपचारिक व्यापारिक विचार का उपक्रम करता है।
व्यवसायी व्यवसाय या वाणिज्य में काम करता है, खासकर कार्यकारी स्तर पर।
अच्छे व्यवसायियों के लिए निम्नलिखित कुछ गुण होना आवश्यक होता है :
  • आज व्यापार एक जटिल गतिविधि है और शिक्षित और कुशल व्यक्तियों की सेवाओं की मांग करता है जो विशेष रूप से व्यापार के बारे में जानते हैं। इसलिए एक अच्छा व्यापारी के लिए और जटिलता को समझने के लिए शिक्षा अनिवार्य है।

  • आज हर व्यवसाय कुछ तकनीकी कौशल की मांग करता है तो एक अच्छा व्यापारी को उन सभी तकनीकी कौशलों को अवश्य पता होना चाहिए जो उस विशेष व्यवसाय के लिए आवश्यक है।

  • व्यापार की सफलता के लिए, यह आवश्यक है कि व्यवसायी एक ईमानदार व्यक्ति हो ।

  • व्यवसायी एक मेहनती व्यक्ति होना चाहिए। अपने व्यवसाय को विकसित करने और उसकी देखभाल करने के लिए उन्हें लंबे समय तक काम करने का आदत होना चाहिए।

  • व्यवसायी एक शांत दिमाग वाला व्यक्ति होना चाहिए ताकि वो अपने अधीनस्थों, सहयोगियों और ग्राहकों से विनम्रता से बात करे।

  • एक व्यवसायी हमेशा अपने व्यवहार मामलों में स्थिर होना चाहिए तथा सामान्य कारोबारी बाधाओं और छोटे नुकसान से उसे परेशान नहीं होनी चाहिए।

  • अच्छा व्यापारी की गुणवत्ता है कि उसे एक अनुशासित व्यक्तित्व होना चाहिए।

  • व्यापार के कई फैसले एक व्यापारी द्वारा किए जाते हैं यह एक अच्छा व्यापारी के लिए आवश्यक है कि उसे तुरंत निर्णय लेने का क्षमता होना चाहिए।

  • एक अच्छे व्यापारी के लिए यह आवश्यक है कि उन्हें अपने सहयोगियों और कर्मचारियों के लिए प्रति सहयोग की भावना होनी चाहिए।

  • एक व्यवसायी को प्रबंधकीय कौशल का विशेषज्ञ होना चाहिए।

  • व्यवसायी को व्यवसाय की प्रगति के लिए नए नियमों को विकसित और लागू करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।

  • एक अच्छा व्यापारी हमेशा अपने पिछले प्रदर्शन पर नजर रखता है और अपने भविष्य के बारे में सोचता है।

प्रबन्ध के सिद्धांत का अर्थ क्या है ?

प्रबन्ध के सिद्धांत एक आधारभूत सत्य है और यह सामान्यतः कारण एवं परिणाम में संबंध प्रकट करता है। प्रबन्ध के सिद्धांत के आधार पर प्रबंधक अपने संस्थान के भविष्य की कल्पना कर सकते हैं तथा इन सिंद्धान्तों को ध्यान में रखकर वे इन छोटी-मोटी गलतियों से भी बच सकते हैं।

सहकारिता क्या है ?

सहकारिता एक स्वैच्छिक प्रकृति की होती है। यह लोगों के एक साथ काम करने की इच्छा से उत्पन्न होती है। यह अनौपचारिक संबंधों से उत्पन्न होती है। किसी भी सामूहिक क्रियाकलाप में बगैर समन्वय के सहकारिता व्यर्थ होती है।
यह समान उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए समूह द्वारा ऐच्छिक रूप में किए गए सामूहिक प्रयासों को व्यक्त करती है।

प्रबंध के कार्य क्या है ?

प्रबन्ध के निम्नलिखित कार्य है :-
  1. नियोजन (Planning) :- प्रबंध भविष्य की आवश्यकताओं का पूर्वानुमान लगाता है ताकि निर्धारित लक्ष्यों की दृष्टि से किए जाने वाले वर्तमान प्रयासों को उनके अनुरूप बनाया जा सके।नियोजन का मतलब होता है कि क्या करना है, क्यों करना है, कहाँ करना है, कब करना है, कैसे करना है तथा किस व्यक्ति द्वारा करना है, इन सभी बातों पर ध्यान देना। इसके साथ ही नियोजन के अंतगर्त विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के तरीकों पर भी विचार किया जाता है।

  2. संगठन (Organisation) :- नियोजन द्वारा उद्देश्य एवं लक्ष्य निर्धारित कर लेने के पश्चात उन्हें कार्यन्वित करने की समस्या आती है जिसे प्रबंध संगठन के माध्यम से करता है। संगठन निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति करने वाले तंत्र है। उपक्रम की योजनाएं चाहे कितनी भी अच्छी एवं आकर्षक क्यों न हो यदि अच्छे संगठन का आभाव है तो सफलता की कामना करना निष्फल होगा। इस तरह कुशल एवं प्रभावी संगठन का निर्माण करना बहुत जरूरी रहता है।

  3. नियुक्तियाँ (Staffing) :- प्रबंध का प्राथमिक कार्य है कर्मचारियों की नियुक्तियाँ करना है जिसका अर्थ है - संगठन की योजना के अनुसार आवश्यक पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति करना उनको आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करना।

  4. निर्देशन (Directing) :- प्रबंध मूलतः व्यक्तियों से कार्य कराने व करने की कला है। प्रबंध का चौथा महत्वपूर्ण कार्य है उपक्रम को निर्देशन अथवा संचालन प्रदान करना। निर्देशन का अर्थ है - संस्था में विभिन्न नियुक्त व्यक्तियों को यह बताना कि उन्हें क्या करना है, कैसे करना है, कब करना है तथा यह देखता है कि वे व्यक्ति अपना कार्य उसी भांति कर रहे हैं या नहीं। निर्देशन प्रबंध का वह महत्वपूर्ण कार्य है जो संगठित प्रयत्नों को प्रारम्भ करता है।
    निर्देशन के अंतर्गत निम्न चार क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है :
    • पर्यवेक्षण (Supervision)
    • सम्प्रेषण (Communication)
    • नेतृत्व (Leadership)
    • अभिप्रेरणा (Motivation)

  5. नियंत्रण (Controlling) :- नियन्त्रण से आशय केवल किए गए कार्य की जाँच करना मात्र ही नहीं है बल्कि ऐसे उपाय करना जिससे उपक्रम के कारोबार को निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति हेतु निश्चित योजनाओं के अनुसार चलाया जा सके और यदि उसमें कहीं कोई अंतर आ जाए तो सुधारात्मक कदम उठाया जा सके। नियंत्रण प्रबंध का एक भाग है।

समन्वय (Co-ordination) क्या है ?

समन्वय (Co-ordination) प्रबंध का सार है जो उपक्रम की विभिन्न क्रियाओं में तालमेल बनाये रखता है। यह निर्धारित लक्ष्य पूर्ति हेतु की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं में एकता अथवा तालमेल बनाये रखता है। समन्वय से लोग एक टीम के रूप में कार्य करते हैं, जिससे पारस्परिक सहयोग की वृद्धि होती है तथा संबंधित व्यावसायिक उपक्रम का सफल संचालन सम्भव होता है।
समन्वय के लक्षण अथवा विशेषताएँ :-
  • समन्वय एक सतत प्रक्रिया है।
  • यह प्रबंध का सार है।
  • यह समूह प्रयासों के अनावश्यक अपवव्य को रोकता है।
  • समन्वय स्थापित करने का प्राथमिक कार्य प्रबन्धकों का है।
  • यह क्रियाओं में एकरूपता लता है।
समन्वय वहां जरूरी होता है जहाँ लोगों का एक समूह समान उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एक साथ काम करता है।

मुख्य कार्यकारी अधिकारी (Chief Executive Officer)किसे कहते हैं ?

मुख्य कार्यकारी अधिकारी (Chief Executive Officer)प्रबंध दल के नेता होता है। इस पद को विभिन्न नामों जैसे - जनरल मैनेजर, महाप्रबन्धक, अध्यक्ष आदि के नामों से जाना जाता है। यह संचालक मंडल के पर्यवेक्षण एवं नियंत्रण में कार्य करता है।
संचालन मंडल के मुख्य कार्य निम्नलिखित है :-
  • संचालक मंडल एवं समग्र संगठन के मध्य सम्पर्क एवं समन्वय बनाये रखना।

  • संचालन मंडल द्वारा निर्धारित नीतियों को प्रभावपूर्ण ढंग से लागू करना।

  • इस तथ्य की जानकारी करना कि अधीनस्थ कर्मचारी नीतियों के प्रभावों से अवगत हैं।

  • यह जानने का प्रयास करना कि सभी स्तर के अधीनस्थ अधिकारीयों द्वारा मितव्ययिता एवं कार्य-कुशलता के उच्च स्तर को बनाये रखने के लिए ध्यान दिया गया है नहीं।

  • प्रभावशाली समन्वय की स्थापना करना।

  • अधीनस्थ अधिकारीयों में स्वतंत्रतापूर्वक या स्वैच्छिक आधार पर कार्य करने की भावना को बनाये रखना।

निम्नस्तरीय प्रबंध के कार्य क्या है ?

निम्नस्तरीय प्रबंध के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं :
  • उच्च प्रबंध द्वारा निर्धारित लक्ष्यों के अनुरूप दैनिक योजनाओं का निर्माण करना।

  • कर्मचारियों को कार्य सौंपना, उन्हें प्रशिक्षित करने की व्यवस्था करना एवं उनका विकास करना।

  • श्रमिकों को सलाह देना व उनकी सहायता करना।

  • कर्मचारियों के कार्य एवं उत्तरदायित्व को निर्धारित करना एवं उन्हें कार्य सौंपना।

  • उत्पादन कार्यों में लीन कर्मचारियों से प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित रखना।

  • कार्य की दशाओं में सुधार हेतु उच्च प्रबंध को आवश्यक सुझाव देना।

  • सामग्री, औजारों व मशीनों की व्यवस्था करना।

संचालन मंडल (Board Of Directors)किसे कहते है ?

संचालन मंडल (Board Of Directors) उच्च प्रबंध का एक महत्पूर्ण अंग है। इसी के द्वारा कम्पनी के उद्देश्यों एवं दीर्घकालीन नीतियों का निर्धारण किया जाता है साथ ही संगठन पर नियंत्रण भी रखा जाता है।
यह वास्तव में एक नीति निर्धारक एवं नियंत्रक सत्ता है। संचालक मण्डल में कुछ विशिष्ट योग्यताएँ होना आवश्यक है ताकि संस्था का सफलतापूर्वक संचालन व विकास हो सके।
संचालन मंडल के मुख्य कार्य निम्नलिखित है :-
  • निक्षेपी का कार्य (Trusteeship)

  • उपक्रम के उद्देश्यों का निर्धारण करना (Determination Of Enterprise Objectives)

  • मुख्य अधिशासी का चयन करना (Selection Of Key Executives)

  • योजनाओं एवं परिणामों की जाँच करना (Checking Of Plans And Results)

  • बजटों का अनुमोदन करना (Approval Of Budgets)

  • व्यवसाय में दीर्घकालीन स्थायित्व प्राप्त करना

  • आय का वितरण करना (Distribution Of Corporate Earning)

  • महत्वपूर्ण मामलों पर विचार-विमर्श करना (Asking Discerning Questions)

मध्यस्तरीय प्रबंध के कार्य क्या है ?

मध्यस्तरीय प्रबंध के निम्नलिखित मुख्य कार्य हैं :-
  • उच्चस्तरीय तथा निम्नस्तरीय प्रबंध के मध्य कड़ी का काम करना एवं प्रभावी समन्वय स्थापित करना।

  • संगठन के विभिन्न अंगों में प्रभावी संतुलन बनाये रखना।

  • वास्तविक परिणामों पर नजर रखना एवं उनकी तुलना निर्धारित लक्ष्यों से करना।

  • उच्चस्तरीय प्रबंध द्वारा निर्धारित उद्देश्य, लक्ष्यों एवं नीतियों की व्याख्या करना।

  • पर्यवेक्षकों को प्रशिक्षण प्रदान करना तथा उनको अभिप्रेरित करना।

  • उपयुक्त विभागों की स्थापना करना।

उच्चस्तरीय प्रबंध के कार्य क्या है ?

उच्च स्तरीय प्रबंध में मुख्य रूप से संचालक मंडल तथा मुख्य कार्यकारी अधिकारी को सम्मिलित किया जाता है। इनके मुख्य कार्य निम्नलिखित है :-
  • महत्वपूर्ण मामलों पर विचार-विर्मश करना ।

  • उपक्रम के उद्देश्यों का निर्धारण करना ।

  • योजनाओं एवं परिणामों की जाँच करना ।

  • आय का वितरण करना ।

  • प्रभावशाली समन्वय की स्थापना ।

  • अधीनस्थ अधिकारीयों में स्वतंत्रापूर्वक या स्वैच्छिक आधार पर कार्य करने की भावना को बनाये रखना।

  • यह जाने का प्रयास करना कि सभी स्तर के अधीनस्थ अधिकारीयों द्वारा मितव्ययिता एवं कार्य-कुशलता के उच्च स्तर को बनाये रखने के लिए ध्यान दिया गया है या नहीं ।

  • बजटों का अनुमोदन करना ।

प्रबंध के स्तर क्या है ?

प्रबंध के स्तर (Level Of Management) से तातपर्य किसी संस्था के प्रबंध पदों में आदेश-निर्देश की व्यवस्था है। प्रबंध के स्तर यह स्पष्ट करता है कि किसी अधिकारी की क्या स्थिति है, कौन किसको आदेश देगा तथा कौन किससे आदेश प्राप्त करेगा।
मूल रूप से प्रबंध के निम्नलिखित तीन स्तर हैं :-
  1. उच्चस्तरीय प्रबंध (Top Level Management) :-उच्चस्तरीय प्रबंध किसी भी संस्था का सर्वोच्च प्रबंध होता है। संस्था का सम्पूर्ण दायित्व उच्चस्तरीय प्रबंध के कंधों पर होता है। इनका मुख्य कार्य नीतियों उद्देश्यों एवं लक्ष्यों का निर्धारण करना है। प्रबंध के इस स्तर में मुख्य रूप सेसंचालन मण्डल तथा मुख्य कार्यकारी अधिकारी को सम्मिलित किया जाता है।

  2. मध्यस्तरीय प्रबंध (Middle Level Management) :- मध्य स्तरीय प्रबंध, उच्च स्तरीय तथा निम्नस्तरीय प्रबंध के मध्य स्थित होता है। मध्य स्तरीय प्रबंध का कार्य सबसे कठिन होता है क्योंकि इन पर तीन ओर से दबाव रहता है। पहला दबाव उच्चस्तरीय प्रबंधक की ओर से होता है, दूसरा दबाव निम्नस्तरीय प्रबंधक की ओर से होता है तथा तीसरा दबाव मध्यस्तरीय प्रबंधकों का स्वयं का होता है।

  3. पर्यवेक्षकीय प्रबंध (Supervisory Management) :- यह प्रबंध के स्तरों के क्रम में सबसे नीचे वाला स्तर है। यह प्रबंध का वह स्तर होता है जो उच्च प्रबंध द्वारा निर्धारित उद्देश्यों एवं नीतियों को अंतिम रूप से कर्मचारियों द्वारा क्रियान्वित करवाते है। इस स्तर के अधिकारियों का प्रत्यक्ष संबंध उन कर्मचारियों से होता है जो कार्यों को सम्पन्न करते हैं। इन्हें अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है - जैसे पर्यवेक्षकीय या प्राचालन या अंतिम पंक्ति या निम्नस्तरीय प्रबंध।

प्रबंध का महत्व क्या है ?

सभी तरह के संस्था में चाहे वो छोटी या बड़ी, व्यावसायिक हो अथवा गैर व्यावसायिक उसके अंतगर्त सामूहिक प्रयत्नों के द्वारा सामान्य उद्देश्य की पूर्ति की जाती है और इन प्रयत्नों में प्रबंध का काफी महत्व रहता है। प्रबंध के बिना उत्पादन के साधन केवल साधन ही रह जाते है।
सामान्यतः प्रबंध के निम्नलिखित महत्व है :

  • प्रबंध निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु उत्पादन के विभिन्न साधनों में प्रभावपूर्ण समन्वय स्थापित कर न्यूनतम प्रयासों से अधिकतम परिणामों की प्राप्ति सम्भव बनाता है। प्रबंध संस्था के उपलब्ध साधनों में उपयुक्त समन्वय स्थापित कर मनुष्यों का विकास करता है।

  • अच्छे एवं कुशल प्रबंधन में दूरदर्शिता, योजनाओं के निर्माण की क्षमता, क्रियाओं के निर्धारण की क्षमता, देश की आर्थिक स्थिति का सही मूल्यांकन करने की क्षमता, ग्राहकों की रूचि का अध्ययन करने की क्षमता आदि होती है जो कटु प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए महत्वपूर्ण है।

  • प्रबंध द्वारा प्रारम्भ में आधारभूत नीतियों का निर्माण किया जाता है और बाद में जरूरत के अनुसार विभिन्न नीतियों का निर्धारण किया जाता है।

  • प्रबन्धक समाज को स्थिरता प्रदान करने वाला तथा परम्पराओं का संरक्षक है।

  • व्यक्तियों के विकास में प्रबंध का अत्यंत महत्व है। प्रबंध की समस्त क्रियाएँ मानवीय विकास से संबंधित होती है। यह व्यक्तियों की कार्यकुशलता में वृद्धि करता है और उनका सर्वांगीण विकास करता है।

  • प्रबंधक प्रत्येक व्यवसाय का गतिशील एवं जीवनदायक तत्व होता है उसके नेतृत्व के आभाव में उत्पादन के साधन केवल साधन-मात्र ही रह जाते हैं, कभी उत्पाद नहीं बन पाते हैं।

  • प्रबंध की आवश्यकता केवल व्यावसायिक क्षेत्रों में ही नहीं अपितु गैर-व्यावसायिक क्षेत्र जैसे- स्कूल, कॉलेज, धार्मिक एवं राजनैतिक संस्थाओं, सामाजिक कार्यों, यहाँ तक कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में जैसे घर,खेल का मैदान आदि में भी रहती है।

  • देश की समृद्धि में भी प्रबंध का काफी महत्व रहता है। कुशल प्रबंधक जब न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन सम्भव बनाते हैं। श्रम समस्याओं को सुलझाते हैं। समाज के विभिन्न अंगों के प्रति अपने उत्तरदायित्व को भली-भांति निभाते हैं जिससे राष्ट्र समृद्धि की और बढ़ता है।

प्रबंध की विशेषताएँ क्या है ?

प्रबंध की निम्नलिखित कुछ विशेषताएं है :
  • प्रबंध की क्रिया निरंतर चलती रहती है। व्यवसाय में निरंतर समस्याओं के सुधार की आवश्यकता रहती है। इसी कारण प्रबंध को एक सतत् प्रक्रिया कहा जाता है।

  • प्रबंध एक सामूहिक क्रिया है, इसका कार्य अन्य व्यक्तियों के सहयोग से कार्य को सम्पादित कराना है।

  • प्रबंध कला भी है और विज्ञान भी क्योंकि इसके वैज्ञानिक एवं कलात्मक रूपों को अलग नहीं किया जा सकता है।

  • वास्तव में प्रबंध एक सामाजिक क्रिया है क्योंकि मुख्य रूप से इसका संबंध व्यवसाय के मानवीय तत्व से है। 
    संस्था के सभी कर्मचारी समाज के ही अंग होते हैं।

  • प्रबंध के सिद्धांत विश्वव्यापी हैं। किसी भी उपक्रम में जहाँ मनुष्यों के समन्वित प्रयास होते हैं प्रबन्ध के सिद्धांत लागू किए जा सकते हैं।

प्रबंध की क्या प्रकृति है ?

प्रबंध की प्रकृति को निम्नलिखित रूपों में समझा जा सकता है -
  1. प्रबंध विज्ञानं एवं कला दोनों है (Management is Both Science And Art) : - प्रबंध कला और विज्ञानं दोनों है। कला का अर्थ किसी कार्य को करने अथवा किसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए ज्ञान एवं कुशलता का उपयोग करना है वास्तव में कला सिद्धांत को व्यावहारिक रूप प्रदान करने की विधि है। प्रबंध में व्यवसाय के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए ज्ञान व कुशलता का उपयोग निहित होता है। इस प्रकार प्रबंध कला है। जो किन्ही सिद्धांतों पर आधारित हो विज्ञान कहलाता है। व्यावसायिक प्रबंध भी निश्चित सिद्धांतों पर आधारित सुव्यवस्थित ज्ञान का भण्डार है। इस तरह से प्रबंध विज्ञान की कोटि में रखने के लिए पर्याप्त है। इस तरह से प्रबंध विज्ञान और कला दोनों है।

  2. प्रबंध एक सार्वभौमिक क्रिया है (Management is a Universal Process) :- प्रबंध का उद्देश्य सामूहिक प्रयत्नों को इस प्रकार नियोजित व नियंत्रित करना है कि कम से कम लागत पर अधिकतम सीमा तक लक्ष्यों की पूर्ति की जा सके। प्रबंध का महत्त्व सर्वव्यापी है। इसका सिद्धांत धार्मिक, राजनैतिक तथा अन्य सभी क्षेत्रों में लागू होते हैं। इस तरह से प्रबंध एक सार्वभौमिक क्रिया है।

  3. प्रबंध एक समाजिक उत्तरदायित्व है (Management is a Social Responsibility):- आज व्यवसाय को मनुष्य की ख़ुशी एवं समाज और राष्ट्र की प्रगति के लक्ष्य प्राप्त करने का साधन मन जाता है। यह उत्तरदायित्व पेशेवर प्रबंधकों पर डाला गया है। यही कारण है कि प्रबंध केवल एक आर्थिक संसाधन ही नहीं अपितु एक सामाजिक उत्तरदायित्व है।

  4. प्रबंध एक जन्मजात प्रतिभा है (Management is an Inborn Quality):- कुछ व्यक्ति जन्म से ही इतने अधिक योग्य, कुशल, अनुभवी एवं दूरदर्शी होते हैं कि वे दूसरों पर कुशलतापूर्वक नेतृत्व एवं संगठन करने की क्षमता रखते हैं। ये गन इसमें जन्मजात होते हैं इसलिए प्रबंध एक जन्मजात प्रतिभा भी है। लेकिन आज के युग में प्रबंध प्रबन्धकीय शिक्षा प्राप्त व्यक्ति कर रहे हैं। अतः प्रबंध एक जन्मजात प्रतिभा के साथ-साथ अर्जित प्रतिभा भी है।

  5. प्रबंध एक सामूहिक क्रिया है (Management is a Group Activity):- प्रबंध एक सामूहिक क्रिया इसलिए कहा जाता है क्योंकि संस्था के लक्ष्यों एवं उद्देश्यों की प्राप्ति एक व्यक्ति की तुलना में अनेक व्यक्तियों अथवा समूह के प्रयासों द्वारा होना अधिक सरल है।

  6. प्रबंध एक अदृश्य शक्ति है (Management is An Invisible Force):- प्रबंध एक अदृश्य शक्ति होती है जो साधनों के सर्वोत्तम उपयोग में सहयोग करती है।

प्रबंध के उद्देश्य क्या है ?

प्रबंध एक प्रक्रिया है। अतः इनके भी कुछ उद्देश्य हैं। यू तो प्रबंध के बहुत सारे उद्देश्य होता है कुछ प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं :
  • प्रबंध का पहला उद्देश्य यह है कि लम्बे समय तक इस प्रतियोगी बाजार में कैसे टिका रहा जाए।
  • समाज के लिए रोजगार का सृजन करना भी प्रबंध का उद्देश्य है।
  • पर्यावरण पर्दूषण को रोकना भी प्रवन्ध का मुख्य उद्देश्य रहता है।
  • कर्मचारियों को उचित पारिश्रमिक देना भी प्रबंध का मुख्य उद्देश्य रहता है क्यूंकि उनके लग्न और मेहनत par ही संगठन का विकास सम्भव है।
  • मिलावट को रोकना भी प्रवन्ध का एक उद्देश्य है।
  • विकास के अवसर प्रदान करते रहना भी इसका एक उद्देश्य है।

प्रबन्ध (Management) क्या है ?

प्रबंधन एक व्यक्ति या व्यक्तियों का एक समूह है जो संगठन चलाने के लिए जिम्मेदारियों को स्वीकार करता है ।
वे संगठन की सभी आवश्यक गतिविधियों को नियंत्रण करते हैं। प्रबंधन एक निरंतर और कभी खत्म नहीं होने वाली प्रक्रिया है।
प्रबंधन स्वयं काम नहीं करता है। वे संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सभी कार्यकर्ता को काम करने और समन्वय (यानी एक साथ लाने) के लिए प्रेरित करते हैं।
प्रबंध मानवीय प्रयासों के नियोजन, संगठन, समन्वय, निर्देशन एवं नियंत्रण द्वारा उपलब्ध संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करता है ताकि निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके।
तो इस तरह हम कह सकते हैं कि किसी भी संगठन के निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उपलब्ध मानवीय एवं भौतिक साधनों का सर्वोत्तम उपयोग ही प्रबंध है।
कुछ प्रमुख विद्वानों ने प्रबन्ध को इस प्रकार परिभाषित किया है :-
  • सी डब्ल्यू विल्सन के अनुसार : इनके अनुसार निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु मानवीय शक्ति का प्रयोग एवं निर्देशित करने की विधि प्रबंध कहलाती है।

  • लारेंस ए. एप्पले के अनुसार : इनके अनुसार प्रबंध व्यक्तियों के विकास से संबंधित है न कि वस्तुओं के निर्देशन से।

  • हेरोल्ड कुन्टज के अनुसार : प्रबंध औपचारिक रूप से समूहों में संगठित मनुष्यों से तथा उनके मिल-जुलकर काम करने तथा कराने की कला है। 

वित्त (finance) की विशेषताएं क्या है ?

  • निवेश के अवसर (Investment Opportunities)
  • लाभदायक अवसर (Profitable Opportunities)
  • आंतरिक नियंत्रण प्रणाली (System of Internal Controls)
  • भविष्य निर्णय लेने (Future Decision Making)

वित्त व्यवस्था (Finance) क्या है ?

वित्त (Finance) एक शब्द है जो धन (money), निवेश (investments) और अन्य वित्तीय उपकरणों (financial instruments) के अध्ययन और प्रणाली (system) का वर्णन करता है।
आज, वित्त केवल एक शब्द नहीं है बल्कि वित्त अब अर्थशास्त्र की एक शाखा के रूप में आयोजित किया जाता है।
वर्तमान में, हम वित्त के बिना दुनिया की कल्पना नहीं कर सकते हैं। वित्त हमारी आर्थिक गतिविधियों की आत्मा है।
  • सामान्य अर्थ में :- "वित्त (Finance) धन और अन्य क़ीमती सामानों का प्रबंधन है, जिसे आसानी से नकदी में परिवर्तित किया जा सकता है।"

आर्थिक विकास (Economic Development) क्या होता है ?

किसी देश के द्वारा अपनी वास्तविक आय को बढ़ाने के लिए सभी उत्पादक साधनों का कुशलतम प्रयोग आर्थिक विकास कहलाता है।
यह एक लगातार या निरंतर चलने वाली प्रक्रिया कारण साधनों की पूर्ति एवं वस्तु संबंधी मांग समय-समय पर बदलती रहती है।
आर्थिक विकास में सामन्य जनता के जीवन-स्तर में सुधार होता है तथा सरकार द्वारा कल्याणकारी कार्यों में वृद्धि की जाती है।
आर्थिक विकास से वास्तविक राष्ट्रीय व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है।
आर्थिक विकास में वृद्धि आकस्मिक न होकर दीर्घकालीन होनी चाहिए।

भारत में उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के सुधार के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव क्या है ?

भारत में उद्यमिता विकास कार्यक्रमों की कमियों को दूर करने के कई विकल्प हो सकते हैं जिनमे उद्यमिता विकास कार्यक्रमों को सुचार रूप से चलाना भी है ताकि नये उद्यम पनप सकें, स्वरोजगार की भावना जागृत हो और जिसके फलस्वरूप दूसरों को भी रोजगार मिल सकें।
भारत में उद्यमिता कार्यक्रमों को सुधारने व अधिक प्रभावी बनाने के लिए महत्वपूर्ण सुझाव निम्नलिखित हैं :

  • उद्यमिता विकास कार्यक्रमों को चलाने वाली संस्थाओं की समय-समय पर जाँच-पड़ताल होनी चाहिए।

  • सरकार को बड़े नियम बनाकर उन संस्थाओं पर रोक लगानी चाहिए जो मात्र धन कमाने हेतु कागजों पर ही सीमित हैं।

  • शिक्षा पद्धति में बदलाव करते हुए उसे उद्यमिता अधिमुखी बनाया जाना चाहिए। इसके लिए तकनीकी व व्यावसायिक शिक्षण संस्थाओं की सख्या बढ़ाने पर बल दिया जाना चाहिए।

  • कर ढांचे को उद्यमियों के अनुकूल बनाया जाना चाहिए।

  • उद्यमिता विकास कार्यक्रम संचालित करने वाली संस्थाओं को सार्थक परियोजनाएं बनाने पर बल देना चाहिए।

  • पिछड़े व ग्रामीण क्षेत्रों में औद्योगिक बस्तियों का निर्माण करके आधारभूत सुविधाओं का विकास किया जाना चाहिए।

हमारे देश में प्रचलित उद्यमिता विकास कार्यक्रमों में प्रमुख कमियाँ क्या सब है ?

हमारे देश में प्रचलित उद्यमिता विकास कार्यकमों में प्रमुख कमियाँ निम्नलिखित है :
  • उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए भारत में सरकारी सुविधाओं व प्रेरणाओं का आभाव है।

  • भारत में उद्यम में जो शिक्षण व प्रशिक्षण दिया जाता है वो मात्र सैद्धान्तिक होता है व जिसका व्यवहार में ज्यादा महत्व नहीं होता।

  • उद्यमिता विकास कार्यक्रम चलने वाले संसथान गुणवत्ता के स्थान पर उद्यमियों की संख्या बढ़ाने पर बल देते हैं जिससे काबिल उद्यमी तैयार नहीं होते व उद्यम के क्षेत्र में आते ही असफलताओं का सामना करते हैं।

  • भारत में अखिल भारतीय स्तर, राज्य स्तर तथा निजी स्तर पर अनेक संस्थाएँ हैं जिनमें समन्वय की कमी है जिसके फलस्वरूप बहुत-सी क्रियाएं फाइलों तक सीमित रहती हैं।

भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान (Entrepreneur Development Institude) क्या है ?

भावी उद्यमियों को प्रशिक्षण प्रदान करता है। यह संस्थान विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों की प्रगति व स्त्रियों में उद्यमिता विकास के लिए कार्यरत है।
उद्यमिता विकास कार्यक्रमों में यह संस्थान एक विशिष्ट स्थान रखता है।

भारतीय विनियोग केन्द्र (Indian Investment Centre) क्या है ?

भारतीय विनियोग केन्द्र सरकार द्वारा स्थापित एक संस्था है।
इसका मुख्य कार्य भारतीय उद्यमियों को विदेशी सहयोग बढ़ाने में सहायता करना है तथा दूसरी तरफ विदेशी उद्यमियों को आवश्यक सूचनाएँ प्रदान करना है।

अखिल भारतीय लघु उद्योग बोर्ड (All India Small Scale Industries Board) क्या है ?

अखिल भारतीय लघु उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए नीतियों व कार्यक्रमों के बारे में फैसला लेता है।
तो इस प्रकार हम कह सकते है कि यह एक सलाहकार समिति के रूप में कार्य करता है जिसका अध्यक्ष केंद्रीय मंत्री होता है।
अखिल भारतीय लघु उद्योग बोर्ड की स्थापना 1954 में हुई।

उद्यमिता विकास कार्यक्रम क्यों आवश्यक है ?

किसी भी राष्ट्र चाहे विकसित हो या विकासशील के आर्थिक व औद्योगिक विकास में उद्यमिता विकास कार्यक्रमों का एक महत्वपूर्ण योगदान होता है।
उद्यमिता विकास कार्यक्रम उद्यमियों को विकसित करके उन्हें उद्योग अपनाने के लिए प्रेरित करके एक संगठन स्थापित करने के लिए काबिल बनाता है।
निम्नलिखित कुछ प्रमुख बातें से जिससे यह स्पष्ट होता है किउद्यमिता विकास कार्यक्रम क्यों आवश्यक है :
  • लगातार बढ़ती बरोजगारी ख़ास तौर से अविकसित देशों में एक बहुत बड़ी समस्या है। उदय विकास योजनाएँ लोगों को अपने उद्योग स्थापित करने के लिए प्रेरित करती हैं तथा उन्हें स्वरोजगार स्थापित करने के लिए सक्षम बनाती हैं। इससे न केवल नए उद्यमियों को रोजगार मिलता है अपितु वे दूसरों के लिए भी रोजगार के अवसर पैदा करते हैं।

  • उद्यमिता विकास कार्यक्रम परियोजना के प्रारूप बनाने में सहायता करते हैं। यह कार्यक्रम परियोजना से संबंधित यंत्र एवं सामग्री कच्चा माल, संरचनात्मक सुविधाओं, श्रम स्त्रोत, वित्तीय स्रोत आदि के बारे में आवश्यक सूचना प्रदान करता है।

  • उद्यमिया विकास कार्यक्रम अपने विभिन्न कार्यक्रम के माध्यम से शिक्षण व प्रशिक्षण देकर सहायता देकर उद्यमियों को स्थानीय संसाधनों का सही उपयोग करने में मदद करती है।

  • उद्यमिता विकास कार्यक्रम उद्यमियों को समय-समय पर तकनीकी बाजार वित्त, सरकारी कार्यक्रमों आदि की सूचनाएँ उपलब्ध कराते है ताकि वे उन सूचनाओं से लाभ उठा सकें।
  • उद्यमिता विकास कार्यक्रम देश व विदेश में नए-नए बाजारों की खोज करने में सहायता करते हैं।

उद्यमिता विकास कार्यक्रम के कुछ मुख्य उदेश्य क्या है ?

उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के उद्देश्य निम्नलिखित है :
  1. उद्यमियों की पहचान करके उन्हें प्रशिक्षण देना।
  2. सही परियोजना से संबंधित पर्यावरण का विश्लेषण करना।
  3. नए उद्यमिता अवसरों का विकास करना।
  4. सरकार से मिलने वाली सहायता और प्रेरणाओं का पता लगाना।
  5. स्वरोजगार की भावना जागृत करना।
  6. उद्यमियों की प्रबन्धकीय क्षमताओं को सुधारना।

उद्यमिता विकास कार्यक्रम क्या है ?

उद्यमिता विकास कार्यक्रम एक व्यापक कार्यक्रम है जो उद्यमियों के विकास पर बल देता है ताकि उद्योग का विकास हो सके।
दूसरे शब्दों में हम इसे ऐसे भी कह सकते है कि उद्यमी विकास योजना एक ऐसी योजना है जो एक उद्यमी की भूमिका को प्रभावशाली बनाने के लिए जो आवश्यक गन चाहिए उन्हें हासिल करने में सहयोग करती है।
यह उद्यमी के औद्योगीकरण का एक अस्त्र है तथा ये उद्यमिता के विकास में आने वाली बाधाओं व समस्याओं का समाधान करता है।
एक उद्यम का विकास उद्यम विकास योजनाओं द्वारा किया जाता है। उद्यम विकास योजनाएँ इस सोच पर आधारित है कि व्यक्तियों का विकास करके उनके दृष्टि कोण को बदला जा सकता है ताकि वह अपने विचारों को एक संगठन की शक्ल दे सकें।

महिला उद्यमियों की कुछ समस्याएं क्या हैं ?

महिला उद्यमियों द्वारा अनुभव की जाने वाली कुछ समस्याएं निम्नलिखित हैं :
  1. महिला उद्यमियों को विशेषकर अपने उत्पादों के विपणन करने में निरंतर बाधाएं उठानी पड़ती है क्योंकि विपणन क्षेत्र में पुरूषों का बाहुल्य है जिसके कारण महिलाएं पर्याप्त अनुभव होने पर भी विशेष स्थान नहीं प्राप्त कर सकती।
  2. महिला उद्यमी को बड़े जोखिम-वहन करने की क्षमता अत्यंत कम होती है क्योंकि वे सुरक्षित जीवन-यापन करने की आदि होती है।
  3. पुरुषों की तरह महिलाएं एक स्थान से दूसरे स्थान तक उतनी आसानी से यात्रा नहीं कर सकती। उन्हें विपणन के संबंध में देर रात बाहर रहने, दूरस्थ स्थानों में जाना अति मुश्किल प्रतीत होता है।
  4. महिला उद्यमी के विकास एवं विस्तार में उच्च उत्पादन लागत भी बाधक होती है।

Women Entrepreneurs (महिला उद्यमी) क्या है ?

महिला उद्यमी से आशय महिला जनसंख्या के उस भाग से है जो औद्योगिक क्रियाओं में साहसिक कार्य में संलग्न। महिला उद्यमी उस उद्यमी को कहा जाता है जो किसी उपक्रम की स्वामी होते हुए उसका नियंत्रण करती है तथा उपक्रम की पूंजी में 51 प्रतिशत का अंश धारण किए हुए है तथा उपक्रम में कार्यरत महिला कर्मचारियों की संख्या न्यूनतम 51 प्रतिशत हो।
अतः एक महिला उद्यमी व्यवसाय को आरम्भ करती है तथा उसका गठन एवं संचालन करती है।
महिला उद्यमियों के अहम योगदान के निम्नलिखित कारण रहे है :
  • वे स्व-विकास के लिए नयी चुनौतियों तथा अवसरों को ज्यादा पसंद करती हैं।
  • वे नव-प्रवर्तक तथा प्रतिस्पर्धी जॉब्स में अपनी योग्यता सिद्ध करना चाहती हैं।
  • वे अपनी घरेलू जिम्मेदारी तथा व्यावसायिक जीवन में संतुलन के द्वारा नियंत्रण को बदलना चाहती हैं।

Women Entrepreneurs (महिला उद्यमी) के लक्षण क्या होती है ?

महिला उद्यमी में जोखिम को वहन करने की दृढ इच्छा शक्ति होती है तथा अपनी योग्यता के द्वारा वह बेहतर पूर्वानुमान, निर्णयन, नियोजन तथा गणना का कार्य कर सकती है।
महिला उद्यमी में मौलिक कल्पना शक्ति होती है। बेहतर कल्पना शक्ति के कारण वह प्रतिस्पर्धी बाजार में नये विचारों तथा अवसरों की बेहतर तलाश कर सकती है तथा सही संगठन के चयन एवं निर्माण में सक्रिय भूमिका निभा सकती है।
महिला उद्यमी में अपने स्वप्नों को पूरा करने या क्रियान्वित करने की दृढ इच्छा शक्ति होती है।
महिला उद्यमी में कठोर परिश्रम की प्रवृत्ति पायी जाती है। कल्पनाशील विचारों के कारण वह उचित खेल खेल सकती है तथा कठोर परिश्रम की प्रवृत्ति के कारण उद्यम को सफल बना सकती है।

आन्तरिक उद्यमी (Intrapreneur) किसे कहते हैं ?

आंतरिक उद्यमी वह व्यक्ति है जो उद्यमियों के अधीन कार्य करता है तथा उन पर ही आश्रित रहता है।
आंतरिक उद्यमी पूंजी का निर्माण नहीं करता है। यह एक आश्रित व्यक्ति है अतएव इसमें स्वतंत्रता का आभाव होता है।
आंतरिक उद्यमी जोखिम वहन नहीं करता है लेकिन यह नवीन विचारों की उतपत्ति करता है।
आंतरिक उद्यमी व्यवसाय का प्रबंधक होता है। अंतएव स्वयं प्रबंध करता है। इनके अंदर पेशेवर योग्यता का होना आवश्यक है। आंतरिक उद्यमी शब्द की उतपत्ति सबसे पहले अमेरिका में हुई थी।

उद्यमी व्यक्ति का क्या महत्व रहता है ?

जोखिम तथा अनिश्चितता वहां करने के लिए एक साहसी तथा दूरदर्शी व्यक्ति की आवश्यकता पड़ती है जो भूस्वामियों से भूमि और पूंजीपतियों से पूंजी प्राप्त करके श्रमिकों तथा संगठनकर्त्ताओं की सहायता से उत्पादन आरम्भ कर सके। आजकल यह कार्य उद्यमी द्वारा किया जाता है।

वस्तुओं का बड़े पैमाने पर उत्पादन उद्यमियों के बिना हो ही नहीं सकता। इसलिए विशाल औद्योगिक इकाइयों की स्थापना तथा संचालन की दृष्टि से उद्यम उत्पादन का अनिवार्य साधन है।

आजकल लोगों की रुचियों और फैशन में निरंतर परिवर्तन होते रहते हैं। 
इससे व्यावसायिक क्रियाओं में अनिश्चितता अत्यधिक बढ़ गयी है। उद्यमियों के योग्य तथा जागरूक होने पर ही आधुनिक उपभोक्ताओं की रुचियों के अनुसार वस्तुओं का उत्पादन किया जा सकता है।

किसी भी देश की तीव्र आर्थिक विकास के लिए योग और कुशल उद्यमी का होना आवश्यक होता है।

देश में रोजगार-अवसरों में वृद्धि में भी उद्यमी का होना जरूरी है।

श्रमिक (Labourer) किसे कहते है ?

श्रमिक वो व्यक्ति होते हैं जिसको किसी विशिष्ठ कार्यों के लिए ही नियुक्त किया जाता है।
श्रमिक का कार्य मुख्यतः शारीरिक होता है। यह व्यवसाय का वेतनभोगी कर्मचारी होता है।
श्रमिक को व्यवसाय संबंधी कोई जोखिम नहीं उठाना पड़ता। श्रमिक को व्यवसाय संबंधी कोई जोखिम नहीं उठाना पड़ता।
श्रमिक को उसकी सेवाओं के बदले मजदूरी मिलती है। इनका मजदूरी पूर्व-निश्चित तथा धनात्मक होती है, चाहे व्यवसाय को लाभ हो या हानि।
इनको अपना मजदूरी एक निश्चित अवधि के बाद प्राप्त हो जाती है चाहे माल की बिक्री हुई हो या नहीं।
श्रमिक अधिक गतिशील होता है। वह अपने काम को तथा स्थान को अधिक आसानी से बदल सकता है।

संगठनकर्त्ता (Organiser) किसे कहते है ?

विभिन्न उत्पादनों में अनुकूलतम संयोग व सहयोग स्थापित करने वाले व्यक्ति संगठनकर्त्ता कहलाता है।
संगठनकर्त्ता का कार्य व्यवसाय का कुशलता से संगठन तथा प्रबंध करना है।
संगठनकर्त्ता उद्यमी अथवा व्यावसायिक संस्था का वैतनिक कर्मचारी होता है। संगठनकर्त्ता को अपनी सेवाओं के बदले निश्चित वेतन मिलता है।
संगठनकर्ता को वेतन पूर्व-निर्धारित अवधि के बाद प्राप्त होता है।
यह उद्यमी द्वारा निर्धारित नीतियों के अनुसार कार्य करता है। व्यवसाय में हानि होने पर भी इसे वेतन मिलता है।

पूंजीपति (Capitalist) किसे कहते है ?

पूंजीपति का कार्य केवल पूंजी उधार देना है।
पूंजीपति किसी व्यवसाय में पूंजी प्रदान करता है और इस तरह वह व्यवसाय का ऋणदाता होता है। पूंजीपति को केवल ब्याज मिलता है चाहे व्यवसाय से लाभ हो या हानि।
पूंजीपति को व्यवसाय के लाभ-हानि से कोई संबंध नहीं होता है। उसे तो बस ब्याज सहित अपनी पूंजी लेने का अधिकार होता है।

एक उद्यमी व्यक्ति की क्या विशेषताएँ होती हैं ?

एक उद्यमी की निम्नलखित प्रमुख विशेषताएँ है :
  1. उद्यमी व्यक्ति सदैव जोखिम में ही जीना पसंद करते हैं परन्तु इनके द्वारा लिए गए जोखिम सदैव सुविचारित होते हैं।

  2. उद्यमी केवल साधनों का एकीकरण ही नहीं करता है बल्कि नए उपकरणों की स्थापना भी करता है तथा औद्योगिक क्रियाओं को विस्तृत रूप प्रदान करता है।

  3. उद्यमी आत्म-संतुष्टि को अधिक प्राथमिक उद्देश्य मानते हैं जबकि मौद्रिक लाभों को गौण मानते हैं। उद्यमियों के लिए उनका कार्य ही अपने आप में लक्ष्य एवं संतुष्टि का बड़ा स्त्रोत होता है।

  4. उद्यमी के अंदर सदैव एक सृजनात्मक असंतोष छिपा रहता है जिसके द्वारा वह नए-नए व्यावसायिक अवसरों की खोज करता है तथा उसका विदोहन करके लाभ अर्जित करता है।

  5. उद्यमी अपने उपक्रमों में सदैव नवीन परिवर्तनों एवं सुधारों को जन्म देता है।

  6. उद्यमी व्यक्तियों का स्वभाव स्वतन्त्र प्रकृति का होता है। वे प्रत्येक कार्य को अपने ढंग से करने में ज्यादा विश्वास रखते है।

  7. उद्यमी स्वयं में एक संस्था है क्योंकि यह विभिन्न संस्थाओं को जन्म देता है।

  8. उद्यमी हमेशा कुछ असम्भव प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं तथा समाज में अलग पहचान बनाना चाहते हैं। इसलिए उद्यमी सदैव कठोर परिश्रम एवं दृढ संकल्प के द्वारा उच्च प्राप्तियों में विश्वास रखते हैं।

एक उद्यमी के कार्य क्या सब होता है ?

उद्यमी के निम्नलिखित कार्य हैं :
  1. नव निर्माण :- एक उद्यमी मूल रूप से नई रीति चलाने वाला होता है तथा वह अर्थव्यवस्था में कुछ न कुछ नया ही लाता है।
  2. संगठन तथा प्रबंध : एक उद्यमी को विभिन्न आर्थिक व मानवीय तत्त्वों को संगठित करना व प्रबंध करना होता है।
  3. उत्पादन-इकाई के आकर का निर्धारण : उद्यमी को यह भी निश्चित करना होता है कि उत्पादन-इकाई का आकार क्या होना चाहिए। मांग के कम होने पर उत्पादन-इकाई का आकार छोटा रखना पड़ता है जबकि मांग के अधिक होने पर इकाई का आकार बड़ा रखा जा सकता है।
  4. उत्पादन के पैमाने का निर्धारण : उद्यमी को इस बारे में भी निर्णय लेना पड़ता है कि वस्तु का उत्पादन छोटे पैमाने पर किया जाए अथवा बड़े पैमाने पर किया जाए।
  5. बिक्री की व्यवस्था उद्यमी का कार्य केवल वस्तुओं का उत्पादन करना ही नहीं बल्कि तैयार माल की बिक्री का प्रबंध करना भी है।
  6. सरकार से संबंध : आजकल कुशल उद्यमी का सरकार के सम्पर्क में रहना आवश्यक होता है। इस संबंध में उद्यमी अनेक कार्य करता है जैसे सरकार से लाइसेंस लेना, सरकार को करों का भुगतान करना आदि।

उद्यमी (Entrepreneur) कितने तरह के होते हैं ?

उद्यमी के निम्नलिखित कुछ प्रकार है :
  1. नव-प्रवर्तक उद्यमी : यह वह उद्यमी होते हैं जो अपने व्यवसाय में निरंतर खोज एवं अनुसन्धान करते रहते हैं और इन अनुसंधानों व प्रयोगों के परिणामस्वरूप व्यवसाय में परिवर्तन करके लाभ अर्जित करते हैं।

  2. जागरूक उद्यमी : यह वह उद्यमी होता है जो अनुसंधान व खोज पर कोई धन खर्च नहीं करते हैं। यह सफल उद्यमियों द्वारा किये गए सफल परिवर्तनों को अपनाते हैं।

  3. पूंजी संचय करने वाले उद्यमी : ये उद्यमी पूंजी संचय करने वाले कार्य जैसे कि बैंकिंग व्यवसाय, बीमा कम्पनी आदि में संलग्न होते है।

  4. आदर्श उद्यमी : इस प्रकार के उद्यमी स्वयं के हित के साथ-साथ सामाजिक हित पर भी ध्यान देते हैं। इनका उद्देश्य केवल अधिकतम लाभ कमाना ही नहीं बल्कि सामाजिक दायित्व को पूरा करना भी है।

उद्यमी (Entrepreneur) क्या होता है ?

उद्यमी वह व्यक्ति है जो व्यवसाय में लाभप्रद अवसरों की खोज करता है। आर्थिक संसाधनों को संयोजित करता है नवकरणों को जन्म देता है तथा उपक्रम में निहित विभिन्न जोखिम एवं अनिश्चिताओं का उचित प्रबंध करता है।
उद्यमी किसी भी मृतक अर्थव्यवस्था में नई ऊर्जा का संचार करता है। वह उद्योग का कप्तान होता है। एक उद्यमी पूंजी की आपूर्ति करता है और व्यापार गतिविधियों पर नज़र रखता है और नियंत्रण करता है। कोई भी व्यक्ति जो कुछ नया बनाता है, जैसे कोई अवसर, कोई व्यवसाय या एक कंपनी, वह उद्यमी कहलाता है।
प्रसिद्ध विद्वान अल्फ्रेड मार्शल (Alfred Marshall) के अनुसार :
उधमी वह व्यक्ति है जो जोखिम उठाने का साहस करता है, जो किसी कार्य के लिए आवश्यक पूंजी एवं श्रम की व्यवस्था करता है, जो उसकी सूझ्म बातों का निरीक्षण करता है।
इस तरह उद्यमी से आशय ऐसे व्यक्ति से है जो किसी नवीन उपक्रम की स्थापना करने का जोखिम उठाता है, आवश्यक संसाधन एकत्रित करता है तथा उसका प्रबंध एवं नियंत्रण करता है।
एक उद्यमी के अनुसार वे लक्षण जो किसी व्यक्ति को उद्यमी की श्रेणी में लाते हैं, निम्नलखित हैं :
  • उद्योग की नवीनता
  • औद्योगिक स्थल एवं
  • नये प्रवेश

उद्यमी (Entrepreneur) व्यक्ति किसे कहते हैं ?

उद्यमी व्यक्ति वह है जो व्यवसाय में लाभप्रद अवसरों की खोज करता है, संसाधनों, तकनीक, सामग्री एवं पूंजी आदि को एकत्रित करता है, नवाचार को जन्म देता है जोखिम वहन करता है तथा अपने चातुर्य एवं तेज दृष्टि से असाधारण परिस्थितियों का सामना करता है एवं लाभ कमाता है।
उद्यमी व्यक्ति के कुछ प्रमुख गुण निम्नलिखित है :
  • कठोर परिश्रमी तथा सतत प्रयत्नशील रहता है।
  • सुविचारित जोखिम उठाता है।
  • अपनी सफलता का पक्का इरादा रखता है।
  • अपने कार्य को सदैव आगे बढ़ता रहता है।
  • सत्य निष्ठा में विश्वास रखता है।
  • समय को महत्व देता है।

उद्यमिता विकास में सामाजिक पर्यावरण की भूमिका क्या है ?

सामाजिक पर्यावरण के अंतगर्त देश में प्रचलित सामाजिक-सांस्कृतिक मान्यताएँ सम्मिलित की जाती है। किसी भी उद्यम का अस्तित्व एवं संचालन समाजिक पर्यावरण पर बहुत हद तक निर्भर करती है और इस तरह सामाजिक पर्यावरण का उद्यमिता विकास में महत्वपूर्ण योगदान होता है जोकि निम्न घटकों पर चिंतन से और अधिक स्पष्ट होगा :
  • व्यावसायिक उद्यमों के निर्माण में सामाजिक परिवर्तन का महत्वपूर्ण योगदान होता है। एक उद्यमी समाज में नये नैतिक एवं सामाजिक मूल्यों के माध्यम से अपनी नीतियों लक्ष्यों व आदर्शों की स्थापना करता है।
  • व्यवसाय का सामाजिक वातावरण समाज की मानवीय प्रवृतियों इच्छाओं, आकांक्षाओं शिक्षा एवं बौद्धिक स्तर, मूल्यों आदि घटकों से निर्मित होता है।
  • सांस्कृतिक सामाजिक परिवेश का एक महत्वपूर्ण अंग होती है। यह व्यक्तियों के दृष्टिकोण एवं मानसिक विकास की व्याख्या करती है।
  • सामाजिक साझेदारी भी उद्यमी को बहुत हद तक सहायता करती है।

उद्यमिता विकास में आर्थिक पर्यावरण की भूमिका क्या है ?

उद्यमिता विकास में आर्थिक पर्यावरण का बहुत महत्व होता है । किसी भी व्यवसाय की सफलता मुख्य रूप से आर्थिक पर्यावरण पर निर्भर करती है । उद्यमिता विकास में आर्थिक पर्यावरण का योगदान इस तरह होता है :
  1. हमारे देश में औद्योगिक नीतियों की घोषणा सरकार द्वारा की जाती है जोकि उद्योगों के विकास के लिए घोषित सरकार की नीतियों की व्यख्या करती है।
  2. सरकार ने विदेशी नीति के अन्तगर्त एक छोटी नकारात्मक सूची को छोड़कर सभी उद्योगों के लिए विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति दे दी है। जिसके फलस्वरूप उद्योग विकास की ओर अग्रसर हुए हैं।
  3. उद्योगों के विकास हेतु पूंजी बाजार को मजबूत बनाने के लिए केंद्रीय सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष घोषित अपने बजट के अंतगर्त समय-समय पर अनेक राजकोषीय प्रोत्साहनों की घोषणा की गई है जिससे उद्यमियों को पूंजी जुटाने में भी सहायता मिलती है।
  4. सरकार द्वारा औद्योगिक विकास के लिए औद्योगिक नीतियों के अंतगर्त लाइसेंस प्रणाली को अपनाया जाता रहा है जिसके द्वारा सरकार नवीन उद्योगों की स्थापना की क्षमता में वृद्धि को नियंत्रित करती रही है।